Saturday 1 December 2018

आत्मघाती कवि

ढोल और ताशे घनघना रहे थे, शोर में भी हम सोचते जा रहे थे....
अब तो लाज बचानी ही पड़ेगी, हमें भी शादी रचानी ही पड़ेगी ।।

 कब तक नाचेंगे बारातो में बन कर मित्रवर परम,
अब तो मिटाना ही होगा इस निष्ठुर समाज का भ्रम ।।

अगर बर्बाद की बर्बादी हो सकती है,
तो कवि की भी तो शादी हो सकती है ।।

तो बस, पड़ोस की पंडिताइन को बनाकर ध्वजवाहक,
छोड़ दिया हमने अपने विवाह प्रस्ताव का चेतक ।।

सोचा था, कोई तो वीरांगना होगी जो युद्ध क्षेत्र में ललकार लगाएगी,
नीरस, बेजायका कविताओं में हल्दी जीरे का तड़का लगाएगी ।।

परन्तु, बारिश में भीगे पटाखे भी कहां बजा करते है ?
कवि के विवाह प्रस्ताव पे गांव वाले कहां कान धरते है ।।

एक हफ्ते तक तो लोग अपने घरों में कहकहा लगा के और हमारे सामने तनिक मुस्कुरा के, चाय पर चर्चा करते रहे ।।

उसके बाद तो मानो बात आई गई सी हो गई,
रामू की ताई भी बरामदे में चारपाई बिछा के सो गई ।।

अमावस की रात में गुमनाम चंद्रमा सा हमारा अस्तित्व एकाकी जीवन का आदी हो रहा था,
मच्छरों की निरंतर भुनभुनाहट के बीच भी ये कवि अश्व बेच के सो रहा था ।।

पर स्वर्गवासी हो कर भी हमारी अम्मा चैन ना पाई,
एक रात हमारे स्वप्न में बिना चिट्ठी चलीं आयी ।।

उमेठ कर हमारा कान जोरो से चिल्लाई,
कलमुहें, करम जले, करम फूट अज्ञानी, इतना समझाया तुझे, पर तुझे समझ ना आयी ।।

मुमकिन नहीं बिना मरे स्वर्ग को पाना,
पाना है अगर कमल तो, कीचड़ भी होगा उठाना ।।

अब क्या समझाते अम्मा को... कमल किसे चाहिए, चाहिए हमको कमला,
पर डरते है उसके भाइयों से, जो कर सकते है हमला ।।

हमने मुंह बनाया, चद्दर तानी और करवट भी ले डाली,
अम्मा ने सर पीट लिया और हमसे फिर ली विदाई ।।

समय बदला, मौसम बदले, ठीक हुई बदकिस्मती की बीमारी,
गांव में सबके बाद ही सही, हो गई शादी हमारी ।।

सोचते थे कि सुबह चूड़ियों की खन खन से होगी और शाम पायल की छन छन से,अब नाच रहे बेलन कि ताल पर सुबह हो या शाम,
भागम भाग ही परम सत्य है, ना माया मिली ना राम ।।

गृहस्थ जीवन में फंसे ऐसे की जीना हुआ दुश्वार,
मित्रों से मिलना छूटा , बस निभता शिष्टाचार ।।

शब्द अटके श्वास नली में, ना कविता हो ना छंद,
हंसना गाना भूल गए सब, बस मुस्काए मंद मंद ।।

काश स्वर्गवासी अम्मा के शब्दों का मर्म हम पहले समझ पाते,
शादी का एटम बम स्वयं पे गिरा क्यूं नागासाकी हो जाते ।।